महाभारत में कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर क्यों मांगा था ? जानिए , भगवान खाटूश्यामजी कौंन थे ?

महाभारत में कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर क्यों मांगा था ? जानिए , भगवान खाटूश्यामजी कौंन थे ?

दोस्तों आज के पोस्ट में हम महाभारत के उस पार्ट के बारे में बताएंगे जो श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर मांगा था । श्री कृष्ण जी बर्बरीक का सर क्यों मांगा था वो इस पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद समझ आएगा । तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ना –
बर्बरीक घटोत्कच का पुत्र था। वो एक वीर , तपस्वी और सिद्धान्त वादी योद्धा था। वो एक से एक अद्भुत शक्तियों का मालिक था। बर्बरीक का यह प्रण था कि वो हमेशा कमजोर लोंगो की मदद करेगा। बर्बरीक भगवान शिव जी और माँ दुर्गा की तपस्या करता था। तपस्या से उसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त थे , जिनका निशाना कभी भी खाली नही जाता ,

महाभारत में कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर क्यों मांगा

जब श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक को पहली बार देखा तो उसे देखकर वो समझ गए थे कि वो युद्ध मे जा रहा है कौरवों का पलड़ा हल्का देखकर अगर बर्बरीक उनकी ओर से युद्ध करेगा तो पांडवो का जीतना कठिन हो जाएगा।

महाभारत में कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर क्यों मांगा
इसीलिए श्री कृष्ण जी  ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक के पास गए और बर्बरीक उससे कुछ मांगने वाले को कभी मना नही करता था।
महाभारत में कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर क्यों मांगा
तो श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक से उसके बाणों का रहस्य पूछा तो उसने सारी बात बतादी उन्हें बाण चलाकर बताये एक पीपल का पेड़ था , जिसका एक पत्ता तोड़ कर श्री कृष्ण जी ने अपने पांव के नीचे रख लिया और बर्बरीक से बाण चलाने को कहा।

बर्बरीक ने बाण चलाया तो पेड़ के हर पत्ते में छेद हो गया और बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी से पाँव हटाने के लिए कहा तो उस पत्ते में भी छेद था श्री कृष्ण जी ने सोचा कि बर्बरीक तो एक क्षण में ही युद्ध के परिणाम को बदल देगा तो श्री कृष्ण जी असली रूप में आ गए और बर्बरीक से उसका सर मांग लिया और बर्बरीक ने खुशी खुशी उनकी बात मान ली , लेकिन एक ईच्छा भी जताई।
बर्बरीक ने उनके दिव्य स्वरुप के दर्शन की इच्छा जताई  जो श्री कृष्ण ने पूरी की। उसने सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की।

महाभारत में कृष्ण जी ने बर्बरीक का सर क्यों मंगा
कृष्ण जी ने यह मांग भी स्वीकार कर ली। फाल्गुन शुल्का एकादशी की पूरी रात्रि को बर्बरीक ने भगवान कृष्ण जी का ध्यान किया और द्वादसी को उन्हें अपने शीश का दान कर दिया।

आज हम बर्बरीक को भगवान खाटूश्यामजी के नाम से जानते हैं।

भगवान खाटूश्यामजी

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